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Tuesday, October 14, 2025

उप मुख्यमंत्री मौर्या पर फर्जी डिग्री से लाभ लेने की एफआइआर दर्ज करने की मांग खारिज ..

उप मुख्यमंत्री मौर्या पर फर्जी डिग्री से लाभ लेने की एफआइआर दर्ज करने की मांग खारिज ..

    प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ दाखिल आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी है। याचिका में केशव पर फर्जी शैक्षिक दस्तावेजों के आधार पर चुनाव लडने व पेट्रोल पंप प्राप्त करने और धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए एफआइआर दर्ज करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता दिवाकर नाथ त्रिपाठी, फर्जी डिग्री से न तो पीड़ित पक्ष हैं और न ही कथित अपराध से प्रभावित हैं। ऐसा लगता है कि याची ने किसी लाभ या बदला लेने के उद्देश्य से याचिका दाखिल की है। न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने कहा कि याची पीड़ित व्यक्ति नहीं है इसलिए उसे याचिका दाखिल करने का अधिकार नहीं है। मालूम हो कि वर्ष 2021 में दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत अर्जी दाखिल कर, केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ फर्जी डिग्री व धोखाधड़ी के आरोप में एफआईआर दर्ज करने की मांग की। त्रिपाठी का आरोप था कि मौर्य ने 2007, 2012 और 2014 के चुनावों में चुनाव आयोग के समक्ष अपनी शैक्षिक योग्यताओं के बारे में गलत हलफनामे प्रस्तुत किए थे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मौर्य ने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन से पेट्रोल पंप हासिल करने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि मौर्य द्वारा हिंदी साहित्य सम्मेलन में इलाहाबाद से प्राप्त प्रथमा, मध्यम’ और उत्तर मध्यमा की डिग्रियाँ उत्तर प्रदेश सरकार, यूजीसी और एनसीटीई द्वारा हाई स्कूल, इंटरमीडिएट और स्नातक (बी.ए.) के बराबर मान्यता प्राप्त नहीं हैं। उन्होंने आरटीआइ के हवाले से कहा कि हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा आयोजित परीक्षाएं माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, यू.पी. के हाई स्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षाओं के बराबर मान्यता प्राप्त नहीं हैं। ट्रायल कोर्ट ने 4 सितंबर 2021 को त्रिपाठी की अर्जी खारिज कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की। शुरू में यह याचिका 318 दिनों की देरी से दाखिल करने के कारण खारिज कर दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 6 जनवरी 2025 को हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और मामले को गुण-दोष के आधार पर तय करने का निर्देश दिया।

    कोर्ट ने अपने विश्लेषण में कहा कि याचिकाकर्ता के आरोप किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करते हैं। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि हिंदी साहित्य सम्मेलन की डिग्रियों की हाई स्कूल योग्यता के बराबर होने का प्रश्न एक प्रशासनिक या नियामक विवाद है जिसे शैक्षणिक अधिकारियों द्वारा हल किया जा सकता है, न कि आपराधिक धोखाधड़ी के आरोपों के माध्यम से। न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के 4 सितंबर 2021 के आदेश को सही ठहराया और कहा कि इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। इस फैसले के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में केवल वही पक्ष आपराधिक शिकायत दर्ज कर सकता है जो सीधे तौर पर पीड़ित हो।

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