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Thursday, November 21, 2024

केजरीवाल मुख्यमंत्री के रूप में काम कर ही नहीं पाएंगे? वर्क फ्रॉम होम होगा, जमानत की शर्त ?

       

         दिल्ली, केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में ऑफिस वर्क कर सकेंगे? सुप्रीम कोर्ट से मिली जमानत पर केजरीवाल की रिहाई के बाद सबसे बड़ा प्रश्न यही है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने जमानत देते हुए सिर्फ दो शर्तें लगाईं। एक तो यह कि अरविंद केजरीवाल इस मामले के बारे में कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करेंगे और दूसरा यह कि छूट मिलने तक ट्रायल कोर्ट के समक्ष सभी सुनवाई में उपस्थित रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जमानत का जो आदेश दिया, वह दिल्ली शराब घोटाला मामले में केंद्रीय जांच अभिकरण (सीबीआई) की तरफ से दर्ज मुकदमे को लेकर था। इसी मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी मामला दर्ज किया है और उसी ने केजरीवाल को पहले गिरफ्तार भी किया था। सुप्रीम कोर्ट की अलग खंडपीठ ने 12 जुलाई को ईडी केस में केजरीवाल को जमानत दे दी थी। तब केजरीवाल जेल से इसलिए बाहर नहीं आ पाए थे क्योंकि सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 12 जुलाई के आदेश में जमानत देने के साथ कुछ शर्तें रखी थीं जिसमें केजरीवाल को ऑफिस जाने से मना किया गया है। तो क्या गुरुवार के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट का ही पिछले आदेश में रखी गई शर्तें खारिज हो जाएंगी?

          दिल्ली आबकारी नीति के मामले में केजरीवाल का मुकदमा लड़ रहे वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि अरविंद केजरीवाल बतौर मुख्यमंत्री अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं। वो जेल से निकल चुके हैं और उनके फाइलों पर दस्तखत करने पर कोई रोक नहीं है। सिंघवी कहते हैं कि केजरीवाल के पास कोई पोर्टफोलियो नहीं है। चूंकि उनके पास कोई मंत्रालय नहीं है तो उन्हें सिर्फ उन्हीं फाइलों पर साइन करना पड़ता है जो स्वीकृति के लिए उपराज्यपाल (एलजी) के पास जाते हैं। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की उस खंडपीठ ने भी एलजी के पास भेजी जानी वाली फाइलों पर दस्तखत करने से मना नहीं किया था, जिसने 12 जुलाई को ईडी मामले में केजरीवाल को जमानत दी थी।

         अभिषेक मनु सिंघवी ने न्यूज चैनल इंडिया टीवी को बताया, ऐसा दुष्प्रचार किया जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल किसी फाइल पर दस्तखत नहीं कर सकते हैं। गुरुवार का आदेश पीएमएलए केस में 12 जुलाई को आए आदेश पर कोई कॉमा या फुल स्टॉप नहीं लगाता है। उस आदेश में कहा गया है कि केजरीवाल के पास कोई पोर्टफोलियो नहीं है। इस कारण से वो वास्तव में किसी फाइल पर साइन करते ही नहीं हैं। उन्हें सिर्फ उन्हीं फाइलों पर साइन करना होता है और वो करते भी हैं जिन्हें एलजी के पास भेजना होता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में साफ कहा गया है कि केजरीवाल उन सभी फाइलों पर साइन कर सकते हैं जो एलजी के पास जाएंगी। बाकी फाइलों पर उनके मंत्रियों के दस्तखत होंगे। केजरीवाल मुख्यमंत्री के रूप में काम नहीं कर सकते हैं, यह कहने के पीछे राजनीति है। मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि ऐसे तिकड़मों से एक चुने हुए मुख्यमंत्री को नहीं हटाया जा सकता है।

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