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Tuesday, September 17, 2024

खनन माफियाओं पर सरकारी तंत्र फेल क्यों ?

खनन माफियाओं पर सरकारी तंत्र फेल क्यों ?

     ठाणे,  रेत के अविवेकी, अवैध तथा पर्यावरण विरोधी खनन का मामला बहुत पुराना है। सीमेंट के आविष्कार के बाद रेत के उपयोग में तेजी आई तथा वह सामान्य घरों के निर्माण में भी प्रयुक्त होने लगी। रीयल स्टेट के क्षेत्र को अच्छा-खासा बढ़ावा मिलने के कारण मकानों का बनना कई गुना बढ़ गया है और उसी अनुपात में रेत का उपयोग बढ़ा है। रेत के बढ़ते उपयोग के कारण रेत के खनन में भी अकल्पनीय वृद्धि हुई है। उसके कारण नदियों से रेत निकालने के काम में अविवेकी, अवैध तथा पर्यावरण विरोधी खनन को भी बढ़ावा मिला है। उस खनन ने समाज के प्रबुद्ध वर्ग का ध्यान आकर्षित किया है। इस कारण पिछले अनेक सालों से नदी पर आस्था रखने वाला समाज, आजीविका के लिये निर्भर गरीब लोग, सरकारें, पर्यावरण तथा उसकी चिन्ता करने वाले वैज्ञानिक तथा अन्य लोग चिन्ता कर रहे हैं। इसी कारण मीडिया भी समय-समय पर इस मुद्दे और उससे जुड़ी गैर कानूनी घटनाओं को प्रमुखता से उठाता रहा है। इसके बावजूद समस्या का हल वही ढ़ाक के तीन पात ही रहा है। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा चलाई गई नर्मदा सेवा यात्रा ने नदियों से जुड़े मुद्दों के साथ-साथ रेत के अविवेकी, अवैध तथा पर्यावरण विरोधी खनन और उससे जुड़े कानून व्यवस्था के मामलों को एक बार फिर पूरी गंभीरता के साथ देश के सामने लाने का काम किया, परन्तु आज भी कई प्रदेशों में खनन बदस्तूर जारी है। वर्तमान समय में महाराष्ट्र के ठाणे जिला, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात के नवसारी जिले में प्रवाहित अंबिका नदी, पूर्णा नदी व डांग जिले की काबेरी नदी तथा वलसाड जिले की अवरंगा नदी, कोलक नदी व समुद्री तटीय क्षेत्रों तथा अन्य राज्यों में आज भी खनन माफिया सक्रिय हैं, परंतु ऐसा लगता है कि शासन-प्रशासन इन खनन माफियाओं के आगे लाचार दिख रही है। और राज्यों की अपेक्षा कम से कम मध्य प्रदेश सरकार ने नर्मदा सेवा यात्रा के माध्यम से समाज को साथ लेकर आगे लाने का काम किया है। साधु-सन्तों से लेकर वैज्ञानिकों, नदी-वैज्ञानिकों, जैव-विविधता, वन और पर्यावरण तथा प्रशासकीय अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों को मुहिम तथा नदी की गहराती समस्याओं से जोड़ा। परिणाम है यह है कि निदान की दिशा में काम करने तथा उचित कदम उठाने का माहौल बना, परन्तु समस्या को निजात दिलाने में सरकारी तंत्र फेल हो रही है।

    वैसे देखा जाए तो रेत खनन के मामलों में अब सरकार को तत्काल कदम उठाए जाना चाहिए। नदी वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों, नदी की जैव-विविधता के जानकारों के साथ-साथ भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान विभाग तथा इंडियन ब्यूरो ऑफ माइन्स, राज्य सरकारों के खनन मंत्रालयों, मछली पालन, घड़ियाल अभ्यारण्यों, जंगली जीवों के विशेषज्ञों और देश के जाने-माने वैज्ञानिकों के सहयोग से रेत के खनन के नियम तथा नीति तय करायी जानी चाहिए। नियम तथा नीति निर्धारकों को सौंपे बिन्दुओं में मुख्य रुप से रेत की भौतिक तथा जैविक जिम्मेदारियों के निर्वाह में क्रिटिकल भूमिका, रेत के हटाने का प्रवाह एवं बायोडायवर्सिटी पर असर, रेत के कणों की प्राकृतिक जमावट का महत्त्व का उल्लेख हो। अपेक्षित होगा कि यह समूह रेत की माइनिंग का सुरक्षित रोडमेप राज्य सरकार को सौंपे तथा उस रोडमेप के आधार पर सही किस्म की निरापद माइनिंग का मार्ग प्रशस्त हो। अनेक नदियों के कछार में अभ्यारण्य मौजूद हैं। इन अभ्यारण्यों में वन्य जीव-जन्तुओं के लिये सुरक्षित आवास का इन्तजाम किया जाता है। इसके अलावा जलचरों यथा घड़ियाल, कछुओं या अन्य जलचरों के लिये समान इन्तजाम किया जाता है। इन क्षेत्रों में नदियों में पानी की व्यवस्था का आधार रेत के अलावा सही आवास भी होता है। उचित होगा कि उपरोक्त विशेषज्ञ दल इन बिन्दुओं पर भी अपनी अनुशंसा दे और अपेक्षित कदमों का ब्यौरा सौंपे। पहाड़ी इलाकों में नदी में रेत के स्थान पर सामान्यतः बोल्डर मिलते हैं। उचित होगा कि उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला जाये तथा समाज को जागरुक किया जाए। यह कदम नदी के प्रारंभिक मार्ग के दोनों ओर के इलाके के बारे में जागरुकता प्रदान करेगा। रेत के अविवेकी, अवैध तथा पर्यावरण विरोधी खनन को कानून बनाकर या समाज को जागरुक कर खत्म नहीं किया जा सकता। इसके लिये व्यवस्था परिवर्तन एक तरीका हो सकता है। सुझाव है कि वन विभाग के काष्टागारों की तर्ज पर रेत, बजरी, गिट्टी और पत्थरों के लिये पर्याप्त संख्या में आउटलेट स्थापित किए जायें। इन आउटलेटों पर रेत, बजरी, गिट्टी और पत्थरों का पर्याप्त स्टॉक रखा जाये। इन आउटलेटों से ही ठेकेदारों तथा उपभोक्ताओं को सामग्री सप्लाई की जाये। आउटलेट पर तुलाई की व्यवस्था हो ताकि वजन के आधार पर कीमत और रॉयल्टी वसूल की जा सके।
    रेत, बजरी, गिट्टी और पत्थरों का परिवहन करने वाले ट्रकों को कलर-कोड प्रदान किया जाये। यदि उस कलरकोड का वाहन नदी या खदान के पास पाया जाता है तो उसे राजसात किया जा सके तथा अपराधी के विरुद्ध कार्यवाही की जा सके। इस व्यवस्था परिवर्तन से समस्या पर अंकुश लगेगा। कानून को बिना दबाव के काम करने का अवसर मिलेगा। माफ़िया राज्य नियंत्रित होगा। रेत, बजरी, गिट्टी और पत्थरों के अविवेकी, अवैध तथा पर्यावरण विरोधी खनन का काम वैज्ञानिक आधार पर करने के लिये माइनिंग विभाग के लोगों को जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए। यह अमला पहले पैराग्राफ में उल्लेखित विशेषज्ञों के मार्गदर्शन के आधार पर सरकार द्वारा जारी मार्गदर्षिका के अनुसार खनन कराये। रेत के मामले में नदी के प्रवाह तथा जैवविविधता का ध्यान रखे। अविवेकी कदम मुक्त काम करे। निकाली रेत, बजरी, गिट्टी और पत्थरों का परिवहन कलर-कोड वाले वाहनों से हो। उनका काम खदान या नदी से सामग्री को आउटलेट तक ले जाना हो। आउटलेट पर पहुँचाई सामग्री का मापतौल हो। स्टॉक रजिस्टर में उसे दर्ज किया जाये। मौटे तौर पर भंडार नियमों का पालन हो। इस कदम से अवैध खनन करने वालों का नदी में प्रवेश या खदान में प्रवेश रुकेगा और अवैध खनन कम होगा। इस कदम से विभाग की जिम्मेदारी तय होगी। भारत की अनेक नदियों के प्रवाह में गाद तथा रेत का जमाव अवरोध पैदा कर रहा है। ऐसे स्थानों की पहचान कर अतिरिक्त रेत को आउटलेट पर कलर-कोड वाले वाहनों से या रेल मार्ग से ले जाया जा सकता है। इस व्यवस्था से नदी के प्रवाह को अवरुद्ध करने वाली रेत से निजात पाने में मदद मिलेगी। और भी अनेक रास्ते हो सकते हैं जो समस्या को कम करने में सहायक सिद्ध होंगे। हमें प्रयास जारी रखना होगा।
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